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ग़ज़ल
दे रही है जुम्बिश-ए-लब दावत-ए-लुत्फ़-ओ-करम
एक हल्का सा तबस्सुम पर्दा-दार-ए-नग़्मा है
सहबा लखनवी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-परवा को दे कर दावत-ए-लुत्फ़-ओ-करम
इश्क़ के ज़ेर-ए-नगीं फिर हर दो आलम कीजिए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
हम और उन के लुत्फ़-ओ-करम मुद्दतों के बाद
ज़ुल्मत हुई है नूर में ज़म मुद्दतों के बाद
सिब्तैन शाहजहानी
ग़ज़ल
मेरे गुल का जो कोई लुत्फ़-ओ-करम देखा है
हुस्न और ख़ल्क़ के तईं उस ने बहम देखा है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
दिल पे ख़ुदा की मार कि फिर भी चैन नहीं आराम नहीं
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
तेरे लुत्फ़-ओ-करम से जो दामन में मेरे आया है
सीने से वो फूल लगाया ख़ार वो मैं ने चूमा है