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ग़ज़ल
अरमाँ को छुपाने से मुसीबत में है जाँ और
शोले को दबाते हैं तो उठता है धुआँ और
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
उर्यानी का रक़्स है जारी बस एक बटन दबाते ही
नस्ल-ए-नौ देखे जाती है फिल्में नीली नीली सी
ग़ाज़ी मोईन
ग़ज़ल
दिल के जज़्बात को होंटों से दबाते क्यों हो
आग लग जाने दो शो'लों को बुझाते क्यों हो
फ़रमान ज़ियाई सिरोजनी
ग़ज़ल
अफ़ीफ़ सिराज
ग़ज़ल
ना'रा-ए-हक़ को दबाते हैं खुली बज़्म में जब
ये किसी गोशा-ए-ज़िंदाँ में जवाँ होता है