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ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-वफ़ा में उम्र भर की सफ़्हा-गर्दानी
समझ में आई उल्फ़त की किताब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-सुख़न में तिफ़्ल-ए-मकतब थे 'ज़हीर'-ए-मन
वगरना इन ज़मीनों को ग़ज़ल की आसमाँ करते
ज़हीर हसनैन
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-मोहब्बत में इक ऐसा दौर आता है
कि औराक़-ए-किताब-ए-दिल परेशाँ होते जाते हैं
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-अज़ल में ऊस्ताद-ए-इश्क़ ने मुझ को
सबक़ पहले दिया था अबजद-ए-वाब-ए-मोहब्बत का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों
हर तिफ़्ल की बग़ल में गुलिस्ताँ है इन दिनों
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
दास्तान-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिखता जाऊँगा
मैं मुअर्रिख़ हूँ तिरा अंजाम लिखता जाऊँगा