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ग़ज़ल
देख कलियों का चटकना सर-ए-गुलशन सय्याद
सब की और सब से जुदा अपनी डगर है कि नहीं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हज़ारों रास्ते वा थे मगर तुझ तक जो पहुँचाती
कहीं वो एक छोटी सी डगर होती तो क्या होता
दिनाक्षी सहर
ग़ज़ल
राहज़नों से घबरा कर सब साथी संगत छोड़ गए
और पुर-ख़ौफ़ डगर पर गर्म-ए-सफ़र हम आज अकेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
अब ये भी नहीं है बस में कि हम फूलों की डगर पर लौट चलें
जिस राहगुज़र पर चलना है वो राहगुज़र तलवार हुई
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
साँसों की पुर-शोर डगर पे रक़्स करेगा सन्नाटा
चुपके से जिस रोज़ अचानक छनका देगी पायल शाम
बद्र वास्ती
ग़ज़ल
डगर सुनसान बिजली की कड़क पुर-हौल तारीकी
मुसाफ़िर राह से ना-आश्ना बरसात सावन की