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ग़ज़ल
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं
बस प्यार हमारी क़ीमत है मिल जाए तो हम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
ग़ज़ल
मेरी ख़ताएँ आ नहीं सकती शुमार में
गिनती हो क्या तिरे करम-ए-बे-हिसाब की