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ग़ज़ल
अनंत गुप्ता
ग़ज़ल
पाया था कुछ सुकून दिल-ए-दाग़-दार ने
ज़ख़्मों को फिर निखार दिया है बहार ने
सय्यद अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
शगुफ़्ता अपना दिल-ए-दाग़-दार रहता है
यहाँ ख़िज़ाँ में भी लुत्फ़-ए-बहार रहता है
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
तुम इसे कह लो हिसाब-ए-दोस्ताँ-दर-दिल 'फ़ज़ा'
हम ने अपना नफ़अ' भी लौह-ए-ज़ियाँ पर लिख दिया