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ग़ज़ल
ये मिस्रा काश नक़्श-ए-हर-दर-ओ-दीवार हो जाए
जिसे जीना हो मरने के लिए तय्यार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत में जो हारे हो तो बेहतर है पलट जाओ
दर-ओ-दीवार-ए-संग-ओ-बाम सब ही याद करते हैं
हिना अम्बरीन तारिक़
ग़ज़ल
नहीं बदले दर-ओ-दीवार-ए-ज़िंदाँ आओ दीवानो
जो पहले थे वही हैं साज़-ओ-सामाँ आओ दीवानो
कृष्ण गोपाल मग़मूम
ग़ज़ल
शर्त-ए-दीवार-ओ-दर-ओ-बाम उठा दी है तो क्या
क़ैद फिर क़ैद है ज़ंजीर बढ़ा दी है तो क्या