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ग़ज़ल
वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लॉन भी
मगर इस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त
कौन जंगल में लगे पेड़ को पानी देगा