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ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
ये रात यूँ ही तो दुश्मन नहीं हमारी कि हम
दराज़ी-ए-शब-ए-ग़म के सबब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
वक़्त बपतिस्मा करे आब-ए-सितारा से उसे
दस्त-ए-दुनिया की दराज़ी से निकलती हुई शाम
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
गुल तुझे देख के गुलशन में कहें उम्र दराज़
शाख़ के बदले वहीं दस्त-ए-दुआ' पैदा हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
रोज़-ए-फ़ुर्क़त की दराज़ी से न देखे शब-ए-हिज्र
हसरत-ए-शाम में तशवीश-ए-सहर कुछ भी नहीं
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
शब-ए-हिज्राँ की दराज़ी से परेशान न था
ये तिरी ज़ुल्फ़-ए-रसा है मुझे मा'लूम न था