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ग़ज़ल
ये रू-ए-दरख़्शाँ ये ज़ुल्फ़ों के साए
ये हंगामा-ए-सुबह-ओ-शाम अल्लाह अल्लाह
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अगर माज़ी मुनव्वर था कभी तो हम न थे हाज़िर
जो मुस्तक़बिल कभी होगा दरख़्शाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
मत कहो क़िस्मत है अपनी बे-दिली नाग़ुफ़्तनी
फिर सहर होगी दरख़्शाँ फिर भले आएँगे लोग
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
कौन ख़्वाबों के जज़ीरे से चला आया 'ख़याल'
दिल में इक रौशनी है सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की तरह
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
लब-ए-जानाँ पे फ़िदा आरिज़-ए-जानाँ के निसार
शाम-ए-रंगीं की क़सम सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की क़सम
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
ताबाँ है दिल में महर-ए-दरख़्शान-ए-मअ'रिफ़त
नूर-उल-क़ुलूब है ये हमारी ज़िया-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
फिर गर्म-ए-नवाज़िश है ज़ौ मेहर-ए-दरख़्शाँ की
फिर क़तरा-ए-शबनम में हंगामा-ए-तूफ़ाँ है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
धुकधुकी चाँद सी जुगनू भी सितारों की मिसाल
इत्र-दाँ तुर्फ़ा वो तोड़े भी दरख़्शान परी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तुम्हीं जो उस की ख़ातिर जागते बैठे रहे शब भर
जो अब सो जाओ तो सुब्ह-ए-दरख़्शाँ कौन देखेगा
पल्लव मिश्रा
ग़ज़ल
मिरे तार ओ पौद लर्ज़ां ब-हवा-ए-ना-मुरादी
मिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल दरख़्शाँ ब-तबस्सुम-ए-रियाई
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
आख़िर को वही हम वही ज़ुल्मात-ए-शब-ए-ग़म
है नूर-ए-रुख़-ए-माह-ए-दरख़्शाँ कोई दिन और