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ग़ज़ल
हमेशा जिस से पहुँचता रहे था दिल को अलम
हज़ार शुक्र कि वो दर्द-ए-बे-दवा न रहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
दिल आसूदा न पाया क्या ख़िज़ाँ और क्या बहार इस को
मोहब्बत में रखे है तुर्फ़ा दर्द-ए-बे-दवा बुलबुल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मस्त-ए-शराब-ए-इश्क़ वो बे-ख़ुद है जिस को हश्र
ऐ 'दर्द' चाहे लाए ब-ख़ुद पर न ला सके
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
जो ख़ुद से हो बे-परवा और इश्क़ से बेगाना
ऐ 'दर्द' वो क्या समझे अफ़्साना मोहब्बत का
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी