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ग़ज़ल
बादा-ए-ख़ुम-ए-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चूर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
मस्तियाँ 'साहिर' की हैं जाम-ए-मय-ए-तौहीद से
हो सके तो ऐसे काफ़िर को मुसलमाँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
अपनी तक़्दीस पे यूँ शैख़-ए-हरम मत इतरा
मैं ने भी परचम-ए-तौहीद उठा रक्खा है
सय्यद अब्दुस सत्तार मुफ़्ती
ग़ज़ल
देखना ये है कि मय-ख़ाने से निकले क्यूँ-कर
शैख़ आए तो बड़ी इज़्ज़त-ओ-तौक़ीर के साथ
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर
अब ज़ुल्म से बाज़ आ जा अब जौर से तौबा कर
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
ख़ुद-बख़ुद जोश-ए-मय-ए-नाब से शीशा उट्ठा
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
किसी सूरत से हो अब उन से शरह-ए-आरज़ू होगी
ज़बाँ ख़ामोश होगी तो नज़र से गुफ़्तुगू होगी