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ग़ज़ल
मौज-ए-बला दीवार-ए-शहर पे अब तक जो कुछ लिखती रही
मेरी किताब-ए-ज़ीस्त को पढ़िए दर्ज हैं सब सदमात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
वसी शाह
ग़ज़ल
शब की बे-अंत ज़ुल्मत से लड़ सकती है एक नन्ही सी लौ
राह भूले हुओं को है बाँग-ए-दरा रखना रौशन दिया
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
हवा के माथे प दर्ज तहरीर मौसमों की तमाज़तों से
जो मिट गई है तो क्या हुआ है नए सिरे से ये बाब लिखना
ताहिर तोनस्वी
ग़ज़ल
वफ़ा के गोश्वारे में मिरा पहला ख़सारा तू
तिरे ही नाम पर दर्ज आख़िरी नुक़सान करना है