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ग़ज़ल
मैं तो वफ़ा की दुनिया में रहती हूँ ऐ 'विला'
इक बेवफ़ा से कोई भी निस्बत नहीं मुझे
वाला जमाल एल-एसिली
ग़ज़ल
तेरा नूर ज़ुहूर सलामत इक दिन तुझ पर माह-ए-तमाम
चाँद-नगर का रहने वाला चाँद-नगर लिख जाएगा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
काट दी वक़्त ने ज़ंजीर-ए-तअल्लुक़ की कड़ी
अब मुसाफ़िर को कोई रोकने वाला भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
झुका दी क़ुदसियों ने बे-तकल्लुफ़ गर्दन-ए-ताअ'त
ज़हे-रुत्बा कफ़-ए-ख़ाक-ए-दर-ए-वाला-ए-दौलत का
बयान मेरठी
ग़ज़ल
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
पानी देने से निहाल-ए-क़द-ए-बाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
उसे नसीब हुई ने'मत-ए-विला-ए-नबी
जहाँ से 'तहनियत' इस तरह शादमाँ गुज़री
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
ग़ज़ल
हिम्मत-अफ़्ज़ाई न जब उम्माल-ए-मामूली ने की
पहुँची रिश्वत अफ़सरान-ए-दर्जा-ए-अव्वल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ख़ाक होना ही मुक़द्दर में है ऐ 'ज़ाहिद' तो फिर
ख़ाक-ए-पा-ए-सय्यद-ए-वाला-गुहर हो जाइए