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ग़ज़ल
डसे हुए हैं ये आगही के न जी रहे हैं न मर रहे हैं
न पूछो इन से सबब कोई भी ये लोग पहले डरे हुए हैं
आइला ताहिर
ग़ज़ल
बन के उड़ नागन मोअज़्ज़िन को डसे ज़ुल्फ़-ए-सनम
वस्ल की शब को अज़ान-ए-सुब्ह का खटका बुरा
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
मोहब्बतों के डसे हैं तो नफ़रतें ला दो
कि ये भी अपने बुज़ुर्गों की इक निशानी है
मोहम्मद उस्मान शाकिर
ग़ज़ल
तड़प रहा हूँ मैं ऐसे कि जैसे साँप डसे
ख़ुदा किसी को भी सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार न दे
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
ग़ज़ल
ये दिल तो जा लगा नागिन के फन पे रक्खे फूलों से
डसे है जान का ख़तरा कशिश भी कम नहीं होती
आशु तोष
ग़ज़ल
ज़ुल्मत-ए-ग़म से न शब की तीरगी से ख़ौफ़ खा
दोस्त बन कर जो डसे उस रौशनी से ख़ौफ़ खा