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ग़ज़ल
हुस्न की दिल में मिरे जल्वा-गरी रहती है
बंद इस शीशा-ए-नाज़ुक में परी रहती है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
क्या कहीं दुनिया में हम इंसान या हैवान थे
ख़ाक थे क्या थे ग़रज़ इक आन के मेहमान थे