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ग़ज़ल
कहानी का ये हिस्सा अब भी कोई ख़्वाब लगता है
तिरा सर पर बिठा लेना मिरा दस्तार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना