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ग़ज़ल
शिकस्त-ए-रंग-ए-रुख़ आइना-ए-बे-ताबी-ए-दिल है
ज़रा देखो तो क्यूँ कर ग़म-ज़दों का दम निकलता है
सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
झुक के मिलने की अज़ल ही से है फ़ितरत 'शाइक़'
गरचे सर-बस्ता-ए-दस्तार-ए-अना हूँ मैं भी
शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बे-मेहरी-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-ब-खूं-ग़ल्तीदन-ए-बिस्मिल-पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सर लेना भी पड़ता है सर देना भी पड़ता है
रास आता नहीं सब को दस्तार-ए-अना रखना
मोहम्मद शरीफ़ कु़रैशी
ग़ज़ल
फ़िक्र-ओ-फ़न की महफ़िलों में अब ये मंज़र आम हैं
बे-हुनर बे-इल्म दस्तार-ए-अना बाँधे हुए