इश्क़ में ये मजबूरी तो हो जाती है
इश्क़ में ये मजबूरी तो हो जाती है
दुनिया ग़ैर-ज़रूरी तो हो जाती है
एक अना-ए-बे-चेहरा के बदले में
चलिए कुछ मशहूरी तो हो जाती है
दिल और दुनिया दोनों को ख़ुश रखने में
अपने-आप से दूरी तो हो जाती है
लफ़्ज़ों में ख़ाली जगहें भर लेने से
बात अधूरी, पूरी तो हो जाती है
जज़्बा है जो रोज़ के ज़िंदा रहने का
हम से वो मज़दूरी तो हो जाती है
- पुस्तक : Beesveen Sadi Ki Behtareen Ishqiya Ghazlen (पृष्ठ 17)
- रचनाकार : Aasima Mushtaq
- प्रकाशन : Fareed Book Depot Pvt. Ltd (Fareed Book Depot Pvt. Ltd)
- संस्करण : 2003
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