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ग़ज़ल
अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए
जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल
क्या ये मौसम तिरे क़ानून के पाबंद नहीं
मौसम-ए-गुल में ये दस्तूर-ए-ख़िज़ाँ किस का है
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
मुझ से मोहब्बत भी है उस को लेकिन ये दस्तूर है उस का
ग़ैर से मिलता है हँस हँस कर मुझ से ही शरमाता है
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी मा'शूक़ से कुछ दूर न था
पर तिरे अहद से आगे तो ये दस्तूर न था
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
तुम्हारी बे-रुख़ी इक दिन हमारी जान ले लेगी
क़सम तुम को ज़रा सोचो कि दस्तूर-ए-वफ़ा किया है
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
ये लोग वही हैं जो कल तक तंज़ीम-ए-चमन के दुश्मन थे
अब आज हमारे मुँह पर ये दस्तूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मैं ब-दस्तूर जलूँगा ये न होगी 'मुज़्तर'
मेरी साथी शब-ए-ग़म शम-ए-सहर है भी तो क्या