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ग़ज़ल
दौलत-ए-क़ुर्ब को ख़ासान-ए-मोहब्बत जानें
चंद अश्कों के सिवा कुछ मेरी क़िस्मत में नहीं
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
दौलत-ए-क़ुर्ब हो या ने'मत-ए-इरफ़ान-ए-जमाल
सिर्फ़ इक अश्क नदामत के सिवा कुछ भी नहीं
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अगर हो सब्र-ओ-क़नाअत की दौलत ऐ 'परवीं'
गदा भी करते हैं वो ही जो शाह करते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दौलत-ए-दीदार हस्ब-ए-मुद्दआ हासिल हुई
मिल गई जिस शख़्स को तक़दीर से इक्सीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
गो हूँ मुफ़लिस पर हूँ अपनी तीरा-बख़्ती से नमी
मेरे घर में दौलत-ए-सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है