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ग़ज़ल
वो दिल जो कुश्ता-ए-ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ न था
शाइस्ता-ए-नवाज़िश-ए-दौर-ए-जहाँ न था
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
है दौर-ए-जहाँ में मुझे सब शिकवा तुझी से
क्यूँ कुछ गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम करूँ मैं
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं
सोचो तो सिर्फ़ कुश्ता-ए-दौर-ए-जहाँ हूँ मैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चल दिए होश-ओ-ख़िरद तो मय-कशों के चल दिए
रह गया हाँ मय-कदे में दौर-ए-साग़र रह गया