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ग़ज़ल
سہنا دیکھیا نس آج کی بیٹھا ہوں شہ کے پاس میں
اے کاش دن نا اوکتا اچتا سو لک ماس میں
सय्यद शाह बुरहानुद्दी जानम
ग़ज़ल
تمارے عشق میں اندیش میں اول نیئں دیکھیا
رھیا دل جا اٹک میں نے نکلنے بل نیئں دیکھیا
शरीफ़ बीजापुरी
ग़ज़ल
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया