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ग़ज़ल
शब बीती चाँद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में
क्यूँ देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
मय भी है मीना भी है साग़र भी है साक़ी नहीं
दिल में आता है लगा दें आग मय-ख़ाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वो जो हुक्म दें बजा है, मिरा हर सुख़न ख़ता है
उन्हें मेरी रू-रिआयत कभी थी न है न होगी