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ग़ज़ल
बहुत शफ़्फ़ाफ़ थे जब तक कि मसरूफ़-ए-तमन्ना थे
मगर इस कार-ए-दुनिया में बड़े धब्बे लगे हम को
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
बाद-अज़-वक़्त पशीमाँ हो कर ज़ख़्म नहीं भर सकते तुम
दामन के धब्बे अलबत्ता मिट सकते हैं धोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
शिकन-आलूद बिस्तर हर शिकन पर ख़ून के धब्बे
ये हाल-ए-शाम-ए-ग़म लिक्खा है हम ने ता-सहर अपना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मुझे बेचैन करते हैं ये दिल के अन-गिनत धब्बे
जो जाता है वो यादों को मिटा कर क्यूँ नहीं जाता
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
लिबास-ए-ज़ाहिरी पर मय से बे-शक दाग़ पड़ते हैं
मगर पीने से अंदर क़ल्ब के धब्बे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
देखना ख़ून के धब्बे हैं कि है गुल-कारी
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
फ़ैसला ये हो न पाया रोज़ की बातों के बाद
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद