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ग़ज़ल
बाहर का धन आता जाता अस्ल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
दौलत तो है आनी-जानी रूप-नगर की राम-कहानी
धन के लोग भी धरती पर कब सुख से रहने पाए हैं
जमील अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ब्याज में खेत न ज़ेवर न वो धन चाहता है
सूद-ख़ोर आज तो बेवा का बदन चाहता है
राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
इक ज़रा रंग-ए-नज़ाकत भी रही मद्द-ए-नज़र
धान-पान ऐ जान तुम हो पहनो धानी चूड़ियाँ