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ग़ज़ल
कोई रस्ता मिले क्यूँकर मिरे पा-ए-ख़जालत को
यहाँ तो पाँव धरना भी कोई इल्ज़ाम धरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
यूँ मह-ओ-अंजुम की वादी में उड़े फिरते हैं वो
ख़ाक के ज़र्रों पे जैसे पाँव धरना ही नहीं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
हक़ ये है कि अंजुम तिरा दिल ठहरे तो क्यूँ-कर
सीने पे उन्हें हाथ भी धरना नहीं आता