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ग़ज़ल
उल्फ़त के फ़साने पर दोनों सर अपना अपना धुनते हैं
हम सुनते हैं वो कहते हैं हम कहते हैं वो सुनते हैं
नूह नारवी
ग़ज़ल
सुनने वालो ग़ौर न करना हम बे-सर हो जाएँगे
जब तक तुम सर धुनते रहोगे सारे गीत सुहाने हैं
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
'सय्यद'-जी के गीत कबत सब सुनते हैं सर धुनते हैं
प्रेम-कथा के रसिया इक दिन खोलेंगे स्कूल मियाँ
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
दोहे कहने और पढ़ने का ऐसा तर्ज़ निकाला था
सुनने वाले सर धुनते थे और पहरों पढ़वाते थे