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ग़ज़ल
जहाँ नासेहों का हुजूम था वहीं आशिक़ों की भी धूम थी
जहाँ बख़िया-गर थे गली गली वहीं रस्म-ए-जामा-दरी रही
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ढब देखे तो हम ने जाना दिल में धुन भी समाई है
'मीरा-जी' दाना तो नहीं है आशिक़ है सौदाई है
मीराजी
ग़ज़ल
शहर में धूम है इक शोला-नवा की 'मख़दूम'
तज़्किरे रस्तों में चर्चे हैं परी-ख़ानों में
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
जाम-ए-जम की धूम है सारे जहाँ में साक़िया
मानता हूँ मैं भी लेकिन तेरे पैमाने के बाद