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ग़ज़ल
सबा शिकवा है मुझ को उन दरीचों से दरीचों से
दरीचों में तो दीमक के सिवा अब और क्या होगा
जौन एलिया
ग़ज़ल
अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना
वक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
अज़रा नक़वी
ग़ज़ल
मैं अपने जिस्म के मुर्दा अजाइब-घर की ज़ीनत हूँ
मुझे दीमक की सूरत चाटती है ज़िंदगी मेरी
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
ख़्वाब के सूखे हुए ख़ाकों में लज़्ज़त का ग़ुबार
नींद के दीमक-ज़दा गत्ते के पीछे इंतिज़ार
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
वो चाट लेता है दीमक की तरह मुस्तक़बिल
तुम्हें पता नहीं माज़ी जो हाल करता है