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ग़ज़ल
वो बाग़-ओ-राग़ के दिलचस्प-ओ-दिल-नशीं मंज़र
कि जिन के होते हुए ख़ुल्द मिस्ल-ए-ख़्वाब नहीं
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
उन से मिलने का मंज़र भी दिल-चस्प था ऐ 'असर'
इस तरफ़ से बहारें चलीं और उधर से खिज़ाएँ चलीं
इज़हार असर
ग़ज़ल
याद-दिलबर में कभी ऐ दिल-ए-मुज़्तर तू ने
हम को चुप-चाप कहीं बैठ के रोने न दिया
उमा शंकर चित्रवंशी बाज़ल
ग़ज़ल
रिश्तों की दीवारें ढा कर मेरे जैसा शख़्स
दिन के ज़र्द पहाड़ के पीछे उतरा है चुप-चाप