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ग़ज़ल
ये दिल-ए-नादाँ हमारा भी अजब दीवाना था
उस को अपना घर ये समझा था जो मेहमाँ-ख़ाना था
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कुछ अपना आश्ना क्यूँ ऐ दिल-ए-नादाँ नहीं होता
कि आए ये रंग गर्दिश-ए-दौराँ नहीं होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
किसी से ऐ दिल-ए-नादाँ जो प्यार करना है
तो ज़ब्त की तुम्हें हर हद को पार करना है