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ग़ज़ल
सुकूँ मिलना कुजा तड़पा दिया बीमार-ए-हिज्राँ को
अजब अंदाज़-ए-दिल-जूई तिरा ऐ चारागर देखा
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
दिल-आज़ारी ने तेरी कर दिया बिल्कुल मुझे बे-दिल
न कर अब मेरी दिल-जूई कि दिल-जूई से क्या हासिल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अब के 'रौनक़' मुझ में भी तौफ़ीक़-ए-दिल-जूई न थी
एक मुद्दत तक मुझे उस ने ख़फ़ा होने दिया
रौनक़ शहरी
ग़ज़ल
सना-ए-हुस्न तौसीफ़-ए-अदा तारीफ़-ए-दिल-जूई
ये सब तम्हीद-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ मालूम होती है