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ग़ज़ल
रुस्वाइयों के ख़ौफ़ से उठता नहीं मैं 'दिल'
ऐ काश दिल को रखता किसी बंदिशों में दोस्त
दिल सिकन्दरपुरी
ग़ज़ल
जिस पे है दिल फ़िदा मिरा जो है मुझे ए'ज़ाज़
उस के भी दिल में काश मोहब्बत ज़रा सी हो
काश कन्नौजी
ग़ज़ल
ज़िंदगी नग़्मा-ए-दिल-कश है मगर ऐ नादाँ
तू ने सीखा ही नहीं आह-ओ-फ़ुग़ाँ के आगे
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
उफ़ ये इज़हार-ए-तग़ाफ़ुल की अदा-ए-दिल-कश
फिर ज़रा कहिए कि हाँ कह तो दिया याद नहीं