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ग़ज़ल
वो हुस्न-ए-वज़्अ देखेंगे क्यूँकर जुड़े हैं दिल
ज़र-गर नई बनी है जो हैकल उट्ठा तो ला
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
साइमा ज़ैदी
ग़ज़ल
किस क़दर ज़ख़्म-ए-दिल-ए-ज़ार ने खाए हैं अभी
लाफ़-ज़न मिल के मिरे यार से आए हैं अभी
मसूद क़ुरैशी
ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ज़ार लिखो जानिब-ए-जानाँ काग़ज़
हाल का लिखते हैं फ़ुक़रा सू-ए-सुल्ताँ काग़ज़
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
ग़ज़ल
दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो
कम न हो इस में ज़रा बल्कि सिवा उस से कहो