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ग़ज़ल
तपती धूपों में भी आ कर अपनी याद दिलाते हैं
चाँद-नगर के 'इंशा'-साहिब आले जिन का हाला था
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
ख़ुद को भूले हुए गुज़रे हैं ज़माने यारो
अब मुझे तुम मिरा एहसास दिलाते क्यूँ हो
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
ग़ज़ल
आँखों में वो आएँ तो हँसाते हैं मुझे ख़्वाब
हर रोज़ नए बाग़ दिखाते हैं मुझे ख़्वाब
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ग़ैर से हम को दिलाते हैं वो लाखों गालियाँ
पिछली बातें याद हम उन को दिला सकते नहीं