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ग़ज़ल
जो रस और बू से आरी हो जिस फूल की धूप से यारी हो
उस फूल पे भँवरा क्यूँ डोले उस फूल पे शबनम क्यूँ ठहरे
ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल
पाकीज़ा एहसास के हाथों प्यास की कैसी मौत हुई
ख़ुश्क लबों पर ज़बाँ फेरता डोले बदन हथियारा सा
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
सुर्ख़ डोरे तिरी आँखों के हैं ग़म्माज़ सनम
कह दिया शब का फ़साना जो गुज़ार आई है
नौशाद मुनीस आज़मी
ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वो तिरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गईं
दिल-ए-बे-ख़बर मिरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है