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ग़ज़ल
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
अब लुट गया है क्या रहा दोज़ख़ से बढ़ के है
रश्क-ए-बहिश्त कहते थे सब जा-ए-लखनऊ
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
पूछा कि दोज़ख़ की जलन बोले कि सोज़-ए-दिल तिरा
पूछा कि जन्नत की फबन बोले तरह-दारी मिरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ऐ ख़ुदा अब तिरे फ़िरदौस पे मेरा हक़ है
तू ने इस दौर के दोज़ख़ में जलाया है मुझे
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़