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ग़ज़ल
कुछ इस तरह से कभी हुआ था सुकूत-ए-दार-ओ-रसन का आलम
न कोई दीवाना सर-ब-कफ़ है न कोई वहशी डटा हुआ है
असलम गुरदासपुरी
ग़ज़ल
कुछ इस तरह से कभी हुआ था सुकूत दार-ओ-रसन का आलम
न कोई दीवाना सर-ब-कफ़ है न कोई वहशी डटा हुआ है
असलम गुरदासपुरी
ग़ज़ल
हर निशान-ए-बाम-ओ-दर जब मिट गया 'असलम' तो क्या
ज़ोर-ए-तूफ़ाँ थम गया आब-ए-रवाँ मद्धम हुआ