aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "du.aa-e-KHair"
दु’आ-ए-ख़ैर की फिर क्या कमी हैदु’आ-गो जब हुसैन इब्न-ए-‘अली है
अक्स-ए-‘दुआ’-ए-ख़ैर चमकादिल हर्फ़ हर्फ़ बिखर रहा था
हद जिस जगह हो ख़त्म हरीफ़ान-ए-'ख़ैर' कीवल्लाह शुरू होते हैं अक्सर वहाँ से हम
दावा-ए-ख़ुश-सुख़नी 'ख़ैर' अभी ज़ेब नहींचंद ग़ज़लों ही पे बग़लें न बजाने लग जाएँ
रऊफ़ 'ख़ैर' पहुँचता वहीं है हिर-फिर करकि इख़्तियार दिल-ए-ज़ार पर नहीं चलता
झलकता है मिज़ाज-ए-शहरयारी हर बुन-ए-मू सेब-ज़ाहिर 'ख़ैर' हर्फ़-ए-ख़ाकसारी ले के निकला है
कहाँ ये 'ख़ैर' कहाँ हार जीत का ख़दशाकि जिस्म ओ जान की बाज़ी से जी नहीं भरता
हम तो आए हैं यहाँ मिटने मिटाने के लिएइस ज़मीन-ए-कर्बला से किस की ख़ातिर भागते
ख़राब-हाल ये बे-'ख़ैर' ओ बे-अदब हो करभटक न जाए कहीं फ़िक्र है सड़क की मुझे
ख़ैर अपनों में इक हम ही नकुल आए हैं शा'इरशहज़ादगी-ए-शौक़ ये आबाई कहाँ है
'रऊफ़' ख़ैर त'अल्लुक़ शुरूअ' से अपनाजमालियात से था हुस्न-ए-शे'रियात से था
मनाना चाहती थी सच्चे दिल से ऐ 'दुआ' उस कोउसे मुझ से शिकायत थी मगर वो और कुछ समझा
ख़ुश्बू मिरे बदन की चुराती हैं रोज़-ओ-शबदेखो 'दुआ' कमाल हैं संदल सी चूड़ियाँ
भरी बरसात आए दिलों में फूल महकेलबों पर ये दुआ थी लबों पर ये दुआ है
चल पड़ी थी सू-ए-मंज़िल जब 'दुआ'इक दुआ सर पर घटा होने लगी
अपनी अपनी तिश्ना-कामी भूल कर जान-ए-'दुआ'आओ घूमें हम ख़ुशी से चाँद की इस रात में
कब शाम ढल गई 'दुआ' और रात आ गईअब तीरगी सवाल थी और मैं सफ़र में थी
ये जो दो दिन की ज़िंदगी है 'दुआ'ये हसीन-ओ-जमील कितनी है
किए रौशन कई चराग़-ए-दुआरौशनी फिर भी बाम पर न हुई
अकेले-पन की 'दुआ' ये शिद्दत ही मार डाले कहीं न मुझ कोवो आएगा तो ये मेरा होना भी उस के सर्फ़-ए-नियाज़ होगा
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