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ग़ज़ल
नक़्श-ओ-निगार-ए-ग़ज़ल में जो तुम ये शादाबी पाओ हो
हम अश्कों में काएनात के नोक-ए-क़लम को डुबो लें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कैसा क़तरा कैसा दरिया किस का तूफ़ाँ किस की मौज
तू जो चाहे तो डुबो दे ख़ुश्की-ए-साहिल मुझे