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ग़ज़ल
मुझे हादसों ने सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहँदियों से रचा हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उन की गली में मेरा
जाने शरमाए वो क्यूँ गाँव की दुल्हन की तरह
गोपालदास नीरज
ग़ज़ल
जब पहले-पहल एहसास हुआ है ग़म का तो दिल ऐसा काँपा
जैसे कि दुल्हन पहली शब की आहट जो मिले थर्रा जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
जल्वा-ओ-पर्दे का ये रंग दम-ए-नज़्ज़ारा
जिस तरह अध-खुले घूँघट में दुल्हन क्या कहना
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वो मिरे सामने दुल्हन की तरह बैठे हैं
ख़्वाब अच्छा है मगर ख़्वाब में क्या रक्खा है
मुज़फ़्फ़र रज़्मी
ग़ज़ल
सेहन में इक शोर सा हर आँख है हैरत-ज़दा
चूड़ियाँ सब तोड़ दीं दुल्हन ने पहली रात को
सिब्त अली सबा
ग़ज़ल
मायों बैठे रूप-सरूप के रोग से वाक़िफ़ लगती है
आँचल भीगा जाता है इस दूल्हन की शहबाली का