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ग़ज़ल
मिरा पयाम है अर्बाब-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न के लिए
कि मन का ख़ूँ न करें इरतक़ा-ए-तन के लिए
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
ग़ज़ल
मुहीत मिस्ल-ए-आसमाँ ज़मीन-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न पे हूँ
सुकूत का सबब है ये मक़ाम-ए-ला-सुख़न पे हूँ
सहबा अख़्तर
ग़ज़ल
कुछ ए'तिमाद का लहजा भी फ़िक्र-ओ-फ़न से मिला
ये सिलसिला तो मुझे 'मीर' के सुख़न से मिला
इक़बाल मजीदी
ग़ज़ल
उसी से फ़िक्र-ओ-फ़न को हर घड़ी मंसूब रखते हैं
ग़ज़ल वाले ग़ज़ल को सूरत-ए-महबूब रखते हैं
फ़ैयाज़ रश्क़
ग़ज़ल
ये फ़िक्र-ओ-फ़न के फ़ित्ने लोग अब अक्सर उठाते हैं
उजाले में तो सुब्हा रात में साग़र उठाते हैं
नईम वाक़िफ़
ग़ज़ल
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
बदीउज़्ज़माँ सहर
ग़ज़ल
दरिया-ए-फ़िक्र-ए-नौ की रवानी में गिर गया
सूरज फिसल के बर्फ़ के पानी में गिर गया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
ऐ फ़िक्र-ए-सुख़न क्यों ज़र-ए-गुल ख़ाक से ले आऊँ
मज़मून अगर कम हों तो अफ़्लाक से ले आऊँ
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हर शुऊर-ओ-फ़िक्र-ए-नादीदा पस-ए-दीवार-ए-हर्फ़
हैं नए मफ़्हूम पोशीदा पस-ए-दीवार-ए-हर्फ़