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ग़ज़ल
मता-ए-दर्द-ए-दिल इक दौलत-ए-बेदार है मुझ को
दुर-ए-शहवार हैं अश्क-ए-मोहब्बत मेरे दामन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
ख़याल-ए-गौहर-ए-दन्दाँ में हम जो रोते हैं
सरिश्क-ए-दीदा-ए-तर है दुर-ए-यगाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
तेरे दाँतों के तसव्वुर से न था गर आब-दार
जो बहा आँसू वो दुर्र-ए-बे-बहा क्यूँकर हुआ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या दुर्र-ए-अश्क से हैं दामन-ए-मिज़्गाँ ममलू
कब ज़बाँ है कि करें शुक्र-गुज़ारी आँखें