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ग़ज़ल
ग़रीब-ख़ाने की ये उदासी ये ना-दुरुस्ती नहीं क़दीमी
चहल पहल भी कभी यहाँ थी कभी ये घर भी सँवर चुका है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कहीं ख़ुद अपनी दुरुस्ती का दुख नहीं देखा
बहुत जहाँ की दुरुस्ती के बंदोबस्त मिले
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
दिल में घर करना है दुनिया के तो सब से पेशतर
कुछ दुरुस्ती अपने अख़्लाक़-ओ-ज़बाँ की कीजिए