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ग़ज़ल
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
तेरा नूर ज़ुहूर सलामत इक दिन तुझ पर माह-ए-तमाम
चाँद-नगर का रहने वाला चाँद-नगर लिख जाएगा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मिज़ाज-ए-अहल-ए-दिल की इम्तियाज़ी शान तो देखो
जो दुश्मन जान-ओ-दिल का है उसी से प्यार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
तिरे तेवर बदलते ही ज़माना हो गया दुश्मन
हिलाल-ए-ईद भी ज़ाहिर हुआ शमशीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हुजूम-ए-आलाम-ओ-ग़म सलामत मगर है फिर भी कोई ख़ला सा
यही तो है राज़ ज़िंदगी का बताए 'हानी' तो क्या बताए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़-ए-सलामत कि ये भी होश नहीं
मैं जिस मक़ाम पे था वो मक़ाम किस का था
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
वो दुश्मन-ए-सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ यही न हो
मा'सूम सी निगाह कि जिस पर गुमाँ नहीं