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ग़ज़ल
ख़ूब है तेरी हिमायत पा के लूटे नक़्द-ए-दिल
ऐ परी दुज़्द-हिनाई माल मारे हाथ में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
सब लूट लिया एक नज़र देख के मुझ को
ऐ दुज़्द-ए-निगह दिल का चुराना नहीं अच्छा
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
ऐ फ़लक रहने दे उर्यां ही पस-अज़-मर्ग भी तू
सोंपता क्या है कफ़न-दुज़द का अस्बाब मुझे
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
दिल मिरा मुट्ठी में रखते हो तुम्हारे हाथ से
छीन कर इक दिन उसे दुज़्द-ए-हिना ले जाएगा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
सोने में नज़्ज़ारा कर लूँ रू-ए-आलम-ताब का
ख़ौफ़ क्या दुज़्द-ए-निगह को है शब-ए-महताब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
ज़ीनत-ए-दस्त-ए-हिनाई है यही दुज़्द-ए-हिना
ग़ैब का मा'रज़ा-ए-वक़्त-ओ-मकाँ में आना
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
फिरता है उधर ज़ुल्फ़ में शाना तो इधर दिल
ये दुज़द न लाया कभू ख़ातिर में असस को
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी गया
ये सरापा शोख़ी-ए-दुज़्द-ए-हिना थी मैं न था
मीरज़ा अबुल मुज़फ़्फर ज़फ़र
ग़ज़ल
यूँ दूद आह का मिरी गुम्बद बँधा है याँ
छत जैसे अब्र-ए-तीरा की तहतुस्समा बंधे