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ग़ज़ल
'सुहैल' उस को भी है ए'तिराफ़-ए-जज़्बा-ए-शौक़
वो बन गया है मुबारक हो दिल-रुबा-ए-जुनूँ
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-शौक़ को बेदार करूँ या न करूँ
तू बता दे मैं तुझे प्यार करूँ या न करूँ
मोहम्मद शफ़ी सीतापूरी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-शौक़ बढ़ाता है जुदा हो जाना
ऊपरी दिल से ज़रा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
इज़हार-ए-जज़्बा-ए-दिल-ए-पोशीदा देखना
अब फूल ख़ुद हैं ख़ार के गिरवीदा देखना
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
मदद इतनी तो कर ऐ जज़्बा-ए-दर्द-ए-निहाँ मेरी
तमन्ना है वो मेरे मुँह से सुन लें दास्ताँ मेरी
साक़िब रामपुरी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-शौक़ का इज़हार न होने पाए
दिल की बे-ताबियाँ नज़रों से गिरा देती हैं