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ग़ज़ल
कि उस का फ़ोन तो अब रोज़ ही इंगेज जाता है
बताओ कब तलक बोलूँ मुझे धोका हुआ होगा
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अंगारे भरे थे लग गई होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
सारे रिश्ते जेठ-दुपहरी गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समुंदर भीनी सी पुर्वाई अम्माँ
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
अबस पम्बा न रख दाग़-ए-दिल-ए-सोज़ाँ पे तू मेरे
कि अंगारे पे होगा चारागर रूई से क्या हासिल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
उस बज़्म में नहीं कोई आगाह-ए-दर्द कब
वाँ ख़ंदा ज़ेर-ए-लब इधर अश्क-ए-निहाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
शाम गए ये मंज़र हम ने मुल्कों मुल्कों देखा है
घर लौटें बोझल क़दमों से बुझे हुए अंगारे लोग
अज़रा नक़वी
ग़ज़ल
कितनी उम्मीदों की शमएँ जलते ही बुझ जाती हैं
अब भी अन-चाहे छाती पर धर ही देते हैं सिल लोग
आबिद अदीब
ग़ज़ल
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
इश्क़ में टपकें तो हैं मोती, नफ़रत में अंगारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़मीं यख़-बस्ता हो जाती है जब जाड़ों की रातों में
मैं अपने दिल को सुलगाता हूँ अँगारे बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
लफ़्ज़ों के इस जादूगर के प्यारे प्यारे शे'र
अंगारे दामन में रक्खे और निकाले फूल