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ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्तों पे इनायात निवालों की तरह
हर निवाले में मगर तंज़ भी बालों की तरह
इक़बाल अहमद ख़ाँआरिफ़
ग़ज़ल
मैं फ़ाक़ा-मस्तों की ज़ीनत हूँ मुफ़लिसों का अमीर
मैं फटने दूँगा नहीं तन पे तिश्नगी का लिबास
सफ़र नक़वी
ग़ज़ल
हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त हो
साथ ही तुम्हारे सर का भी कासा शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गर्डर फ़ना
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
अब शाइ'री में और किसी को भी दें जगह
मज्ज़ूब-ओ-मस्त-ओ-फ़क़्र-ओ-क़लंदर निकाल कर